Thursday, March 1, 2012

लम्हा लम्हा

मै ये मानता हू के
लम्हे फुलो कि तरहा होते है ,
कभी खिलते है तो कभी मायूस होते है....
बीती हुवी बातो को अपनी सिने में
रख महफूझ अतीत में पलते रह्ते है .
किसी सुनीसी दोपहर यादोन के झुले पे सवार होकर
जब भी मै , फिरसे अतीत के मेरे उस , बीछडे शहर जाता हू
तब एक पुराने मगर , बडे दिलचस्प पेड से जरूर मिलता हू
जिसकी हर शाख पर अनगीनत लम्हो के फूल
समय के बेरहम शिकंजे से , अपने आपको बडे हूनर से
बचाये टीमटीमाते रहते है .
मुझे देखकर ये लम्हो के फूल
कभी शिकायत करते है तो कभी
मुस्कुराकर जी भरके बाते करते है
ये मेरा गीत भी उनही लम्होके
फुलोंकी गुफ्तगू का एक छोटासा अंश है!
-सत्यजीत खारकर

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